फ़िक़्रा ये क्या के शानो शौकत है
ये भी इक रंग है ज़ुरूरत है
लोग कहते हैं लत बुरी है यह
पर ये ग़फ़लत मेरी हक़ीक़त है
वर्ना कह देता, हूँ अभी मश्गूल
आप आए हो मुझको फ़ुर्सत है
है नज़ारों में वैसे क्या क्या पर
मेरी नज़रों को आपकी लत है
बिक तो सकता है कोई भी इंसान
इक तबस्सुम ही उसकी क़ीमत है
वो जो दर्या बहा रहा आँसू
शायद उसको मेरी ज़ुरूरत है
हुस्न आदत है इश्क़ की यानी
हुस्न यार इश्क़ की बदौलत है
हो चुकी है ग़ज़ल पर इसमें फ़क़त
एक ग़ाफ़िल और उसकी ग़फ़लत है
-‘ग़ाफ़िल’
वाह सुन्दर ग़ज़ल !!!
ReplyDeleteवर्ना कह देता, हूँ अभी मश्गूल
ReplyDeleteआप आए हो मुझको फ़ुर्सत है
फुर्सत तो है न गाफिल जी ... :) :)
खूबसूरत ग़ज़ल .
बहुत सुन्दर।
ReplyDelete--
श्री राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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मित्रों पिछले तीन दिनों से मेरी तबियत ठीक नहीं है।
खुुद को कमरे में कैद कर रखा है।
वाह🌻
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