चले न तीरे नज़र जब न बेशुमार चले
हमारी सिम्त चले गर तो बार-बार चले
हमारी सिम्त चले गर तो बार-बार चले
जिसे था आना न आया वो जाने इस बाबत
हम इंतज़ार में ये ज़िन्दगी गुज़ार चले
हुज़ूर साँस भी लूँ क्या हवा के झोंके हैं
हवा भी ऐसी जो ले ग़र्द-ओ-ग़ुबार चले
हम ऐसे हैं के तग़ाफ़ुल न कर सकेंगे कभी
वो कैसे थे के हमें करके दरकिनार चले
न सोगवार हों आप इश्क़ तो हुआ ग़ाफ़िल
भले ही प्यार की बाजी हुज़ूर हार चले
-‘ग़ाफ़िल’
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