आशिक़ी में तो शान है अपनी
हाँ पर आफ़त में जान है अपनी
लोग सुध-बुध गँवा भी सकते हैं
ऐसी तान ऐ जहान है अपनी
पंख हैं पंखुड़ी गुलाब अपने
ता'फ़लक़ पर उड़ान है अपनी
आप लोहा हैं तो नज़र आएँ
आँख पारस की खान है अपनी
होगी दरकार आपको भी कुछ
एक दिल की दूकान है अपनी
जी ज़रर में है गा रहे हैं ग़ज़ल
यूँ भी हस्ती महान है अपनी
राहे उल्फ़त है ग़ाफ़िल और उस पर
जानलेवा थकान है अपनी
-‘ग़ाफ़िल’
बहुत खूब
ReplyDeleteक्या बात है 👌👌👌
ReplyDeleteलिखने का कुछ नया अंदाज़ है आपका ।