अबके इस आवारापन में उस आवारे की बात कहाँ
जो गाते-गाते गुज़री है उस बंजारे की रात कहाँ
चलते में सोयी सोयी सी, वह ख़्वाब में खोयी खोयी सी,
हँसते भी रोयी रोयी सी उस बेचारे की जात कहाँ
वह अल्हड़ शोख़ जवानी सी, बहती नदिया मस्तानी सी,
बिल्कुल जानी-पहचानी सी इकतारे की सौगात कहाँ
-‘ग़ाफ़िल’
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बहुत सही ..
ReplyDeleteवाह वाह .. बहुत खूब
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं।
धन्यवाद !!
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/10/blog-post.html
जो गाते गाते गुजरी है वह बंजारे की रात कहाँ,,,,,
ReplyDeleteवाह,,बहुत सुंदर पंक्तियाँ,,,,गाफिल जी,,,बधाई स्वीकारें,,,,
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