दिए क्या भला आज तक ज़िन्दगी को
लगाए नहीं तुम गले गर किसी को
नहीं रोक पाओगे ख़ुद को जो मेरी
तसव्वुर में लाओगे तश्नालबी को
दहल जाएगा दिल तुम्हारा भी बेशक
निहारोगे जब भी मेरी बेबसी को
न डूबा तो क्या लाश मुझको कहोगे
मैं हूँ तैरकर पार करता नदी को
किसी ने किया आज इज़्हारे उल्फ़त
कहूँ तो कहूँ क्या मैं इस दिल्लगी को
अरे यार ग़ाफ़िल न लौटेगी फिर क्या
हुआ एक अर्सा गए भी हँसी को
-‘ग़ाफ़िल’
लगाए नहीं तुम गले गर किसी को
नहीं रोक पाओगे ख़ुद को जो मेरी
तसव्वुर में लाओगे तश्नालबी को
दहल जाएगा दिल तुम्हारा भी बेशक
निहारोगे जब भी मेरी बेबसी को
न डूबा तो क्या लाश मुझको कहोगे
मैं हूँ तैरकर पार करता नदी को
किसी ने किया आज इज़्हारे उल्फ़त
कहूँ तो कहूँ क्या मैं इस दिल्लगी को
अरे यार ग़ाफ़िल न लौटेगी फिर क्या
हुआ एक अर्सा गए भी हँसी को
-‘ग़ाफ़िल’
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