अश्कों को रोकता हूँ मैं रुकते मगर नहीं
आतिश हैं वो के आब हैं उनको ख़बर नहीं
इस शह्र के हैं लोग अजब ही ख़याले ख़ाम
दुश्मन भी गर मिले तो मिले मातिबर नहीं
भड़केगी आग और हो जाएगा ख़ाक तू
आतिशजनी से होगा अलग अब भी गर नहीं
पूछें यही सभी के मिलोगे किधर जनाब
मैं कह रहा हूँ जबके मैं रहता किधर नहीं
आती नहीं है नींद के जैसे कहा हूँ मैं
जाना जिधर हो जाए पर आए इधर नहीं
ग़ाफ़िल भी चाहता है के आदत में हो शुमार
ये पा उधर बढ़ें न जिधर तेरा घर नहीं
-‘ग़ाफ़िल’
आतिश हैं वो के आब हैं उनको ख़बर नहीं
इस शह्र के हैं लोग अजब ही ख़याले ख़ाम
दुश्मन भी गर मिले तो मिले मातिबर नहीं
भड़केगी आग और हो जाएगा ख़ाक तू
आतिशजनी से होगा अलग अब भी गर नहीं
पूछें यही सभी के मिलोगे किधर जनाब
मैं कह रहा हूँ जबके मैं रहता किधर नहीं
आती नहीं है नींद के जैसे कहा हूँ मैं
जाना जिधर हो जाए पर आए इधर नहीं
ग़ाफ़िल भी चाहता है के आदत में हो शुमार
ये पा उधर बढ़ें न जिधर तेरा घर नहीं
-‘ग़ाफ़िल’
जय मां हाटेशवरी...
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दिनांक 22/07/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
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