हो कभी तो वही अपनी ज़िल्लत भी हो
या ख़ुदा इश्क़ ही मेरी ताक़त भी हो
मंज़िले इश्क़ हासिल तो हो जाए गर
उससे इज़्हार की थोड़ी हिम्मत भी हो
है दगाबाज़ पर ग़ौर से देखिए
शायद उसमें ज़रा सी शराफ़त भी हो
यार तारीफ़ केवल उबाऊ लगे
लुत्फ़ आए जो थोड़ी फ़ज़ीहत भी हो
जी को राहत न हो तो भला आपकी
होके होना भी क्या गर इनायत भी हो
एक ‘ग़ाफ़िल’ को फिर और क्या चाहिए
जब दुआ हो, दवा हो, नसीहत भी हो
-‘ग़ाफ़िल’
या ख़ुदा इश्क़ ही मेरी ताक़त भी हो
मंज़िले इश्क़ हासिल तो हो जाए गर
उससे इज़्हार की थोड़ी हिम्मत भी हो
है दगाबाज़ पर ग़ौर से देखिए
शायद उसमें ज़रा सी शराफ़त भी हो
यार तारीफ़ केवल उबाऊ लगे
लुत्फ़ आए जो थोड़ी फ़ज़ीहत भी हो
जी को राहत न हो तो भला आपकी
होके होना भी क्या गर इनायत भी हो
एक ‘ग़ाफ़िल’ को फिर और क्या चाहिए
जब दुआ हो, दवा हो, नसीहत भी हो
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (21-07-2016) को "खिलता सुमन गुलाब" (चर्चा अंक-2410) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'