Thursday, July 07, 2016

जलाना है अगर कुछ तो ग़मे फ़ुर्क़त जला देना

समझ में कुछ नहीं आए मुझे वापस है क्या देना
मिला जो प्यार मुझको उसके बदले में, ...बता देना!

हैं मेरे पास तो धोख़े हज़ारों किस्म के फिर भी
बना है सिलसिला अब तक मेरा लेना तेरा देना

बुझाने के लिए मुद्दत की मेरी तिश्नगी है तो
जलाना है अगर कुछ तो ग़मे फ़ुर्क़त जला देना

निकल आएगी ही सूरत कोई उस तक पहुँचने की
अरे ओ दिलनशीं! ख़ुद के ज़रा दिल का पता देना

किसी ग़ाफ़िल को गरचे इश्क़ फ़र्माए कोई तो क्यूँ
बहुत आसान है आसान यह जुम्ला सुना देना

-‘ग़ाफ़िल’

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-07-2016) को "ईद अकेले मना लो अभी दुनिया रो रही है" (चर्चा अंक-2397) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. जय मां हाटेशवरी...
    नेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 08/07/2016 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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