गुल सूख जाए हर इक या ग़ुम हों चाँद तारे
गाएंगे लोग फिर भी याँ गीत प्यारे प्यारे
ऐ अब्र! है बरसना तो झूमकर बरस जा
है गर महज़ टहलना तो फिर यहाँ से जा रे!
गोया के आ रहे हैं अब तक सँभालते ही
पागल नदी को फिर भी दिखते नहीं किनारे
डालो अलाव में जी! कुछ और अब जलावन
क्या आँच दे सकेंगे बुझते हुए शरारे
तुर्रा है यह के उल्फ़त ख़ंजर की धार सी है
और उसपे रक्स को हैं बेताब लोग सारे
वह बेल इश्क़ वाली सरसब्ज़ क्या रहेगी
ग़ाफ़िल रहेे जो तेरे शाने के ही सहारे
-‘ग़ाफ़िल’
गाएंगे लोग फिर भी याँ गीत प्यारे प्यारे
ऐ अब्र! है बरसना तो झूमकर बरस जा
है गर महज़ टहलना तो फिर यहाँ से जा रे!
गोया के आ रहे हैं अब तक सँभालते ही
पागल नदी को फिर भी दिखते नहीं किनारे
डालो अलाव में जी! कुछ और अब जलावन
क्या आँच दे सकेंगे बुझते हुए शरारे
तुर्रा है यह के उल्फ़त ख़ंजर की धार सी है
और उसपे रक्स को हैं बेताब लोग सारे
वह बेल इश्क़ वाली सरसब्ज़ क्या रहेगी
ग़ाफ़िल रहेे जो तेरे शाने के ही सहारे
-‘ग़ाफ़िल’
जय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 30/08/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
महोदय आभार आपका
Deleteऐ अब्र! है बरसना तो झूमकर बरस जा
ReplyDeleteहै गर महज़ टहलना तो फिर यहाँ से जा रे!
डालो अलाव में जी! कुछ और अब जलावन
क्या आँच दे सकेंगे बुझते हुए शरारे
वाह्ह्ह्ह....क्या ख़ूब जनाब
ऐ अब्र! है बरसना तो झूमकर बरस जा
ReplyDeleteहै गर महज़ टहलना तो फिर यहाँ से जा रे!
डालो अलाव में जी! कुछ और अब जलावन
क्या आँच दे सकेंगे बुझते हुए शरारे
वाह्ह्ह्ह....क्या ख़ूब जनाब