अब तलक जो हुई सब थी बेकार की
चाहिए बात हो अब ज़रा प्यार की
खिलके गुंचे भी तो हो गए फूल सब
ख़ूबसूरत घड़ी है ये इज़हार की
गर सुनाने लगा मैं कभी हाले दिल
बात चल जाएगी तुझसे तकरार की
हुस्न के तो क़सीदे पढ़े जा रहे
याद जाती रही इश्क़ के मार की
आह! रुस्वाइयाँ हो रहीं बारहा
उस मुहब्बत की जो मैंने इक बार की
जो भी होना है ग़ाफ़िल जी हो जाए अब
या तो इस पार की या तो उस पार की
-‘ग़ाफ़िल’
चाहिए बात हो अब ज़रा प्यार की
खिलके गुंचे भी तो हो गए फूल सब
ख़ूबसूरत घड़ी है ये इज़हार की
गर सुनाने लगा मैं कभी हाले दिल
बात चल जाएगी तुझसे तकरार की
हुस्न के तो क़सीदे पढ़े जा रहे
याद जाती रही इश्क़ के मार की
आह! रुस्वाइयाँ हो रहीं बारहा
उस मुहब्बत की जो मैंने इक बार की
जो भी होना है ग़ाफ़िल जी हो जाए अब
या तो इस पार की या तो उस पार की
-‘ग़ाफ़िल’
No comments:
Post a Comment