Monday, December 08, 2014

बेजा क़रार आया

बहुत तुरपाइयाँ कीं रिश्तों की फिर क्यूँ दरार आया।
तुम्हारी एक मीठी बोल पर बेजा क़रार आया।।

ग़मे-फ़ुर्क़त का जो अहसास था वह फिर भी थोड़ा था,
जो ग़म इस वस्ल के मौसिम में आया बेशुमार आया।

तुम्हारी बेरूख़ी का यह हुआ है फ़ाइदा मुझको,
पसे-मुद्दत मेरा ख़ुद पर यक़ीनन इख़्तियार आया।

सहेजो इशरतों को ख़ुद की जो इक मुश्त हासिल हैं,
मुझे गर लुत्फ़ आया भी कभी तो क़िस्तवार आया।

ऐ ग़ाफ़िल! होश में आ नीमशब में फिर हुई हलचल,
तुझे तुझसे चुराने फिर से कोई ग़मगुसार आया।।

(ग़ार= बड़ा गड्ढा, पसे-मुद्दत=मुद्दत बाद, नीम शब=अर्द्धरात्रि, ग़मगुसार=सहानुभूति रखने वाला)
                                                        -गाफ़िल
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30 comments:

  1. वाह, बहुत बढिया
    आपको पढना वाकई सुखद है।

    तुम्हारी बेरूख़ी का यह हुआ है फ़ाइदा मुझको,
    बाद अर्से के मुझपर ख़ुद मेरा ही इख़्तियार आया।

    क्या कहने

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    1. बहुत-बहुत शुक़्रिया महेन्द्र सर आप सब से ही हमारी अंजुमन रोशन है

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  2. बहुत खूबसूरत गजल

    तुम्हारी बेरूख़ी का यह हुआ है फ़ाइदा मुझको,
    बाद अर्से के मुझपर ख़ुद मेरा ही इख़्तियार आया।

    बहुत खूब

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  3. ग़मे-फ़ुर्क़त का जो एहसास था वह फिर भी थोड़ा था,
    जो ग़म इस वस्ल के मौसम में आया बेशुमार आया।

    तुम्हारी बेरूख़ी का यह हुआ है फ़ाइदा मुझको,
    बाद अर्से के मुझपर ख़ुद मेरा ही इख़्तियार आया।

    बाद अरसे के मौसमें ,बहार आया ,

    मेरा दोस्त बढ़िया अशआर लाया .

    उन्हें तो आया ,आया ,नहीं आया ,

    हमें तो (गाफ़िल) हर अदा पे उनकी प्यारा आया .

    भाई साहब बहुत बेहतरीन अशआर हैं गज़ल के .मर्बेहवा.

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  4. तुम्हारी एक मीठी बोल पर बेजा क़रार आया।
    भली नफ़्रत ही थी तुझपर मुझे नाहक़ ही प्यार आया।।

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  5. अच्छी कोशिश।
    'तुम्हारी एक मीठी बोल' की जगह 'मीठी बोली' रहे तो अच्छा है।

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  6. बहुत ख़ूब! वाह!

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  7. ऐ ग़ाफ़िल होश में आ! नीमशब में फिर हुई हलचल,
    तुझे तुझसे चुराने शायदन फिर ग़मगुसार आया।।

    वाह ...बहुत सुंदर लिखा है ...!!
    हर शेर गहन अर्थ लिए ....!!

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  8. bahut khoob, " sataya hai jin aankhon ne bar bar mujhe, gaflt me mujhe un aanko se pyar aaya......"

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  9. ग़मे-फ़ुर्क़त का जो एहसास था वह फिर भी थोड़ा था,
    जो ग़म इस वस्ल के मौसम में आया बेशुमार आया।
    बहुत ही बेहतरीन गज़ल है गाफिल जी ! हर शेर लाजवाब है ! आपकी हर गज़ल कथ्य और शिल्प दोनों में बेजोड़ होती है ! बहुत बहुत सुन्दर !

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  10. बहुत खूब भाई जी |
    बधाई ||
    उत्कृष्ट गजल ||

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  11. तुम्हारी एक मीठी बोल पर बेजा क़रार आया।
    भली नफ़्रत ही थी तुझपर मुझे नाहक़ ही प्यार आया।।
    बढ़िया ग़ज़ल ये शेर बहुत प्यारा लगा दाद कबूल कीजिये इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए

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  12. बहुत खूबसूरत गजल

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  13. वाह ... बेहतरीन

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  14. बहुत ही बढ़िया गजल...
    :-)

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  15. वाह,,,बहुत खूब गाफिल जी,,,,उम्दा शेर,,,,

    ऐ ग़ाफ़िल होश में आ! नीमशब में फिर हुई हलचल,
    तुझे तुझसे चुराने शायदन फिर ग़मगुसार आया।।

    RECECNT POST: हम देख न सके,,,

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  16. वाह बेहद खूबसूरत एहसास

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  17. ग़मे-फ़ुर्क़त का जो एहसास था वह फिर भी थोड़ा था,
    जो ग़म इस वस्ल के मौसम में आया बेशुमार आया।

    तुम्हारी बेरूख़ी का यह हुआ है फ़ाइदा मुझको,
    बाद अर्से के मुझपर ख़ुद मेरा ही इख़्तियार आया।

    बाद अरसे के मौसमें ,बहार आया ,

    मेरा दोस्त बढ़िया अशआर लाया .

    उन्हें तो आया ,आया ,नहीं आया ,

    हमें तो (गाफ़िल) हर अदा पे उनकी प्यारा आया .

    भाई साहब बहुत बेहतरीन अशआर हैं गज़ल के .मर्बेहवा.

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  18. बहुत उम्दा ग़ज़ल !.....!
    सुप्रभात...आपका रविवार मंगलमय हो!

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  19. ऐ ग़ाफ़िल
    तेरी इस प्यारी सी गज़ल पर
    मुझे तुझ पे प्यार बेशुमार आया ....

    मुबारक हो !
    खुश रहें!

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  20. ऐ ग़ाफ़िल होश में आ! नीमशब में फिर हुई हलचल,
    तुझे तुझसे चुराने शायदन फिर ग़मगुसार आया।।
    behtarin...aaj bahut dino baad blog par aana hua..aaj aap tan apni mailid ke dwaara pahunch..pahle sher kee turpaayee ka to jawab nahi..wah.

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  21. .

    तुम्हारी बेरूख़ी का यह हुआ है फ़ाइदा मुझको,
    पशेमुद्दत मेरा ख़ुद पर यक़ीनन इख़्तियार आया

    कमाल की ग़ज़ल लिखी है
    आदरणीय चन्द्र भूषण जी मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ साहब
    हमेशा की तरह…

    बहुत ख़ूब ! बहुत ख़ूब !!


    बांटते रहें बेहतरीन ग़ज़लियात के मोती…
    शुभकामनाओं सहित…
    राजेन्द्र स्वर्णकार

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  22. गाफ़िल साहब आप गजब की ग़ज़ल लिखते हैं} और इस पर कोई समीक्षा करने की मैं हैसियत नहीं रखता हम तो बस लुत्फ़ उठाते हैं।

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