लोग इतना क़रीब रहकर भी,
दूरियां कैसे बना लेते हैं।
बात करना तो बड़ी बात हुई,
देखकर आँख चुरा लेते हैं।
फ़ासिला तीन और पाँच का मिटे कैसे,
चार दीवार खड़ी बीच से हटे कैसे,
मेरी नाकामयाब कोशिश पे,
लोग हँसते हैं, मज़ा लेते हैं।
मैं वफ़ा करता रहा उनकी बेवफ़ाई से,
वो जफ़ा करते रहे हैं मेरी वफ़ाई से,
नग़्में ये सब वफ़ा-जफ़ाई के,
किसको कब कैसा सिला देते हैं।
उम्र ‘ग़ाफ़िल’ तेरी उनको ही मनाने में गई,
उनकी भी एक उमर तुझको सताने में गई,
छोड़ ये फ़ालतू क़वायद है,
और अफसाना सजा लेते हैं।।
-‘ग़ाफ़िल’
दूरियां कैसे बना लेते हैं।
बात करना तो बड़ी बात हुई,
देखकर आँख चुरा लेते हैं।
फ़ासिला तीन और पाँच का मिटे कैसे,
चार दीवार खड़ी बीच से हटे कैसे,
मेरी नाकामयाब कोशिश पे,
लोग हँसते हैं, मज़ा लेते हैं।
मैं वफ़ा करता रहा उनकी बेवफ़ाई से,
वो जफ़ा करते रहे हैं मेरी वफ़ाई से,
नग़्में ये सब वफ़ा-जफ़ाई के,
किसको कब कैसा सिला देते हैं।
उम्र ‘ग़ाफ़िल’ तेरी उनको ही मनाने में गई,
उनकी भी एक उमर तुझको सताने में गई,
छोड़ ये फ़ालतू क़वायद है,
और अफसाना सजा लेते हैं।।
-‘ग़ाफ़िल’
क्या बात है, गाफिल साहब,
ReplyDeleteसच कहा कोई और अफसाना सजा लेते हैं।
नया साल मुबारक।
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (03-01-2015) को "नया साल कुछ नये सवाल" (चर्चा-1847) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
नव वर्ष-2015 आपके जीवन में
ढेर सारी खुशियों के लेकर आये
इसी कामना के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
नये वर्ष की शुभकामनायें !
ReplyDeleteक्या बात ..बहुत खूब
ReplyDelete