ईलाज-
राख करने के सबब ज़ुल्मो-सितम
लाज़िमी है कुछ हवा की जाय और
उस लपट की ज़द में तो आएगा ही
शाह या कोई सिपाही या के चोर
एक जब फुंसी हुई ग़ाफ़िल थे हम
रोने-धोने से नहीं अब फ़ाइदा
अब दवा ऐसी हो के पक जाय ज़ल्द
बस यही तो क़ुद्रती है क़ाइदा
वर्ना जब नासूर वो हो जाएगी
तब नहीं हो पायेगा कोई इलाज
बदबू फैलेगी हमेशा हर तरफ़
कोढ़ियों के मिस्ल होगा यह समाज
-‘ग़ाफ़िल’