कवि तुम बाज़ी मार ले गये!
कविता का संसार ले गये!!
कविता से अब छन्द है ग़ायब,
लय है ग़ायब, बन्द है ग़ायब,
प्रगतिवाद के नाम पे प्यारे!
कविता का श्रृंगार ले गये!
कवि तुम...!
भाव, भंगिमा, भाषा ग़ायब,
रस-विलास-अभिलाषा ग़ायब,
शब्द-भंवर में पाठक उलझा
ख़ुद का बेड़ा पार ले गये!
कवि तुम...!
एक गद्य का तार-तार कर,
उसपर एंटर मार-मारकर,
सकारात्मक कविता कहकर
'वाह वाह' सरकार ले गये!
कवि तुम...!
पद की गरिमा को भुनवाकर,
झउआ भर पुस्तक छपवाकर,
पाठ्यक्रमों का हिस्सा बनकर
‘ग़ाफ़िल’ का व्यापार ले गये!
कवि तुम बाज़ी मार ले गये!
कविता का संसार ले गये!!
कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.
कविता का संसार ले गये!!
कविता से अब छन्द है ग़ायब,
लय है ग़ायब, बन्द है ग़ायब,
प्रगतिवाद के नाम पे प्यारे!
कविता का श्रृंगार ले गये!
कवि तुम...!
भाव, भंगिमा, भाषा ग़ायब,
रस-विलास-अभिलाषा ग़ायब,
शब्द-भंवर में पाठक उलझा
ख़ुद का बेड़ा पार ले गये!
कवि तुम...!
एक गद्य का तार-तार कर,
उसपर एंटर मार-मारकर,
सकारात्मक कविता कहकर
'वाह वाह' सरकार ले गये!
कवि तुम...!
पद की गरिमा को भुनवाकर,
झउआ भर पुस्तक छपवाकर,
पाठ्यक्रमों का हिस्सा बनकर
‘ग़ाफ़िल’ का व्यापार ले गये!
कवि तुम बाज़ी मार ले गये!
कविता का संसार ले गये!!
कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
ReplyDeleteसूचनार्थ |
एक गद्य का तार-तार कर,
ReplyDeleteउसपर एंटर मार-मारकर,
सकारात्मक कविता कहकर
वाह वाह सरकार ले गये!
हाहाहा बहुत बढ़िया कटाक्ष कितने रोचक अंदाज में ,जैसे आज मोर्डन आर्ट होती है उसी तरह की कवितायें होती है समझ ना आये तो मोर्डन कविता कह दो बोलो कैसी रही सलाह ??
कवि की सोच का कोई पार नहीं है
ReplyDeleteबहुत खूब
कविता से अब छन्द है ग़ायब,
लय है ग़ायब, बन्द है ग़ायब,
प्रगतिवाद के नाम पे प्यारे!
कविता का शृंगार ले गये!
सच है ...
झउआ भर पुस्तक छपवाकर,
पद की गरिमा ख़ूब भुनाकर,
पाठ्यक्रमों का हिस्सा बनकर
‘ग़ाफ़िल’ का व्यापार ले गये!
वाऽह ! क्या बात है !
देखने-मिलने में आते रहते हैं पाठ्यक्रमों का हिस्सा बनने वाले/पुरस्कृत होते रहने वाले ऐसे अनेक तिकड़मी चिल्लर कवि ...
आदरणीय
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’जी
आप हमेशा स्तरीय लिखते हैं ...
आपको पढ़ने की मन से इच्छा रहती है ...
नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत खूब भाई साहब .युग परिवर्तन की आहट देती है यह रचना -
ReplyDeleteएक तरफ है नारी साड़ी ,कैटवाक उस तरफ है यारो -
क्वाटर पेंट कैपरी है अब ,साड़ी हो गई आज डिज़ाईनर ,
रूप रंग श्रृंगार ले गई ,
कविता सारा प्यार ले गई .
मंगलवार, दिसम्बर 25, 2012
ऐ कवि बाज़ी मार ले गये!
ऐ कवि बाज़ी मार ले गये!
कविता का संसार ले गये!!
कविता से अब छन्द है ग़ायब,
लय है ग़ायब, बन्द है ग़ायब,
प्रगतिवाद के नाम पे प्यारे!
कविता का श्रृंगार ले गये!
ऐ कवि...!
भाव, भंगिमा, भाषा ग़ायब,
रस और ज्ञान-पिपासा ग़ायब,
शब्द-भंवर में पाठक उलझा
ख़ुद का बेड़ा पार ले गये!
ऐ कवि...!
एक गद्य का तार-तार कर,
उसपर एंटर मार-मार कर,
सकारात्मक कविता कहकर
'वाह वाह' सरकार ले गये!
ऐ कवि...!
झउआ भर पुस्तक छपवाकर,
धन और पद को ख़ूब भुनाकर,
पाठ्यक्रमों का हिस्सा बनकर
‘ग़ाफ़िल’ का व्यापार ले गये!
ऐ कवि बाज़ी मार ले गये!
कविता का संसार ले गये!!
रूप रंग रस धार ले गई ,
ReplyDeleteप्रीतम का श्रृंगार ले गई ,
कविता सारा प्यार ले गई ,
जीवन का सब सार ले गई .
बहुत ही सुंदर रचना,अतुलनीय। आज ही आपके पेज के दर्शन हुए,धन्यबाद।
ReplyDeleteबिल्कुल सच कहा आपने अब किसी को लगे तो लगे...गद्य टाइप की कविता भी कोई कविता है अगर ऐसे ही कवि बनना होता तो डॉ. विद्यानिवास मिश्र जी कवि ही बने होते...जो छन्द में न हो, अलंकारित न हो, उसे पढ़कर कोई रस न मिले वह कविता कैसी...कवि बनना इतना आसान थोड़े है...वह तो भला हो 'निराला' जी का जिनकी बदौलत कवियों की भरमार हो गयी वर्ना तुक, ताल, लय, मात्रा में लिखे कोई कविता तब पता चले कि कवि बनना कितना पापड़ बेलना होता है...आज की कविताओं में भाव-शब्द का मेल ही नहीं होता और जब कोई अर्थ नहीं निकलता तो प्रगतिवादी और नयी आदि न जाने क्या क्या हो जाती है कविता...बस चार क्लिष्ट साहित्यिक शब्दों को जोड़ दो हो गयी कविता! इससे अच्छा तो भाव प्रदर्शन हेतु एक सुन्दर आलेख लिख दिया दिया जाय क्या आवश्यक है कविता लिखना? उच्चतर आलेख, निबन्ध, कहानी, उपन्यास आदि गद्य विधा में लिखें तब भी मान्यता प्राप्त गद्य-कविताकार साहित्यकार माने जाएंगे...ग़ाफ़िल साहब आपकी यह कविता भले ही तथाकथित प्रगतिवादी और नयी कविता के कवियों को नागवार गुज़रे पर आपने बहुत सही लिखा है बधाई आपको और आभार आपका
ReplyDeleteऐसा सुन्दर व सटीक वर्णन किया है की बस पढ़कर मुग्ध हो गया हूँ सर ढेरों बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteआज के कवि पर गाफ़िल जी बाज़ी मार ले गये ....सटिक!
ReplyDeleteहाहाहहाहा, बढिया
ReplyDeleteवैसे गाफिल इस कविता के बाद में भी यही कहूंगा कि आप भी बाजी मार ही ले गए...
मार एंटर
ReplyDeleteलिख लिख गद्य को
बना कविता!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteलुप्त हुआ है काव्य का, नभ में सूरज आज।
बिना छंद रचना करें, ज्यादातर कविराज।।
--
चार लाइनों में मिलें, टिप्पणिया चालीस।
बिना छंद के शान्त हो, मन की सारी टीस।।
--
बिन मर्यादा यश मिले, गति-यति का क्या काम।
गद्यगीत को मिल गया, कविता का आयाम।।
--
अनुच्छेद में बाँटिये, लिख करके आलेख।
छंदहीन इस काव्य का, रूप लीजिए देख।।
कटाक्ष तो खूब किया है पर कविता किसी विधा की मोहताज नहीं। विधाएँ तरसती हैं उसे खुद में आत्मसात करने के लिए। अभिव्यक्ति सशक्त है, भाव दमदार है, कुछ अनूठा है तो वह पाठक के दिल को हिलोरेगा ही।..बहरहाल..दमदार कविता के लिए बधाई स्वीकार करें।
ReplyDeletelajabab racna ...aaj ke sahitya par wakai kararee chot hai yah rachna
ReplyDeleteसारा छपास का रोग झेल रही है बेचारी कविता !
ReplyDeleteसटीक व्यंग बहुत ही सुंदर प्रस्तुति,,,,आप तो बाजी मार ले गये,,,
ReplyDeleterecent post : नववर्ष की बधाई
sateek!!
ReplyDeleteabhaar
naaz
बहुत सुन्दर और सटीक...
ReplyDeletebahut hi prabhavshali vyang ...badhai mishr ji .
ReplyDeleteपहले तो इस विषय पर कोई इतनी अच्छी कविता लिख सकता है, मेरे कल्पना से परे थी। इसके लिए आपको सलाम!!
ReplyDeleteइस कविता में कही हर बात से सहमत।
bahut sahi likha hai aapne aaj ki kavita par...
ReplyDeleteएक गद्य का तार-तार कर,
ReplyDeleteउसपर एंटर मार-मारकर,
सकारात्मक कविता कहकर
'वाह वाह' सरकार ले गये!
कवि तुम...!
badhiya....achha sandesh...
वाह! बहुत ही सटीक कविता!
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