ईलाज-
राख करने के सबब ज़ुल्मो-सितम
लाज़िमी है कुछ हवा की जाय और
उस लपट की ज़द में तो आएगा ही
शाह या कोई सिपाही या के चोर
एक जब फुंसी हुई ग़ाफ़िल थे हम
रोने-धोने से नहीं अब फ़ाइदा
अब दवा ऐसी हो के पक जाय ज़ल्द
बस यही तो क़ुद्रती है क़ाइदा
वर्ना जब नासूर वो हो जाएगी
तब नहीं हो पायेगा कोई इलाज
बदबू फैलेगी हमेशा हर तरफ़
कोढ़ियों के मिस्ल होगा यह समाज
-‘ग़ाफ़िल’
आग लगी है साऱी कायनात को इन दिनों ....
ReplyDeleteबड़ी ही मौजू रचना है भाव और शब्दों की लयात्मक ताल लिए .एक उद्देश्य लिए ,बदल दो इस रवायत को ...
बृहस्पतिवार, दिसम्बर 27, 2012
कोढ़ियों के मिस्ल होगा यह समाज
ज़ुल्मो-सितम को ख़ाक करने के लिए,
लाज़िमी है कुछ हवा की जाय और।
उस लपट की ज़द में तो आएगा ही;
चोर या कोई सिपाही या के और।।
एक जब फुंसी हुई ग़ाफ़िल थे हम,
रोने-धोने से नहीं अब फ़ाइदा।
अब दवा ऐसी हो के पक जाय ज़ल्द;
बस यही है इक कुदरती क़ाइदा।।
वर्ना जब नासूर वो हो जाएगी,
तब नहीं हो पायेगा कोई इलाज।
बदबू फैलेगी हमेशा हर तरफ़;
कोढ़ियों के मिस्ल होगा यह समाज।।
नूतन वर्ष अभिनन्दन .
Virendra Sharma @Veerubhai1947
ram ram bhai मुखपृष्ठ http://veerubhai1947.blogspot.in/ बृहस्पतिवार, 27 दिसम्बर 2012 खबरनामा सेहत का
Virendra Sharma @Veerubhai1947
ram ram bhai मुखपृष्ठ http://veerubhai1947.blogspot.in/ बृहस्पतिवार, 27 दिसम्बर 2012 दिमागी तौर पर ठस रह सकती गूगल पीढ़ी
बहुत ही लाजबाब प्रस्तुति,,,,बधाई
ReplyDeleterecent post : नववर्ष की बधाई
ak gambhir prastuti,nav varsh ki hardik badhayee
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना |
ReplyDeleteबहुत ही मौजू और बेहतरीन संवाद हमारे वक्त के साथ हुआ है इस रचना में इस पर सुबह भी भाई साहब टिपण्णी की थी .कहाँ यह याद नहीं .अन्यत्र शायद .
ReplyDeleteसामयिक रचना
ReplyDeleteबहुत बढिया
सही कहा है आपने..
ReplyDeleteआपको सहपरिवार नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ....
:-)
नव वर्ष शुभ और मंगलमय हो |
ReplyDeleteआशा
बहुत प्रभावी रचना.
ReplyDeleteएक जब फुंसी हुई ग़ाफ़िल थे हम,
ReplyDeleteरोने-धोने से नहीं अब फ़ाइदा।
अब दवा ऐसी हो के पक जाय ज़ल्द;
बस यही है इक कुदरती क़ाइदा।।
wah wah ....subhanallah .....
.बधाई शानदार प्रस्तुति के लिए
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया आपकी ताज़ा टिपण्णी के लिए
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