Friday, March 22, 2013

अपलक

रात
सड़क के किनारे
चिल्लाती रही
वह लहूलुहान
गुज़र रही थी
एक बारात
बैण्डबाजे के शोर में
डूब गयी
उसकी आवाज़
सुबह
सड़क के किनारे
पाई गयी
जमे ख़ून में लिपटी
एक लाश
भीड़ को घूरती
अपलक।

-‘ग़ाफ़िल’

कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.

11 comments:

  1. बहुत सुन्दर!
    आज के चर्चा मंच पर भी आपकी पोस्ट का लिंक है!
    सादर!

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  2. मार्मिक रचना,आभार.

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  3. बहुत ही ममस्पर्शी रचना,,,
    होली की हार्दिक शुभकामनायें!

    Recent post: रंगों के दोहे ,

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  4. yatharth chitran kiya hai ...........samvedan sheelata ght rhi hai sath hi manveey moolyon ko samajhane wale ab kahan hain ? ....behad prabhavshali rachana lagi bilkul sangrhneey rachana likhi hai aapne ....sadar badhai ....sath hi holo pr hardik shubhkamnayen .

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  5. उफ़ ...यथार्थ का मार्मिक चित्रण

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  6. बहुत बारीक तंज है भीड़ को घूरती लाश .......

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  7. बहुत बारीक तंज है भीड़ को घूरती लाश .......गाफिल साहब बहुत मार्मिक व्यंग्य विडंबन .

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  8. सेतु चयन होली के सतरंगी रंगों से रंगा है गजल गुजिया साथ साथ वाह क्या बात है .मेरे आदरणीय चिठ्ठों और चिठ्ठियों फाग मुबारक ,रागरंग मुबारक जीवन के ढंग मुबारक ,ब्लॉग के सबरस-रंग मुबारक .

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