हो चुके फ़ाकेहात फीके से।
आज के इख़्तिलात फीके से॥
हसीन मिस्ले-शहर मयख़ाने,
लगते अब घर, देहात फीके से।
साथ साक़ी का हाथ में प्याला,
यूँ तो हर एहतियात फीके से।
बस उसके ख़ाब में मेरा खोना
और हर मा’लूमात फीके से।
चख चुका अब शराबे-लब ग़ाफ़िल,
अब तो आबे-हयात फीके से॥
(फ़ाकेहात=ताज़े हरे मेवे जैसे सेब आदि, इख़्तिलात= चुम्बन आलिंगन आदि, आबे-हयात= अमृत)
कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.
आज के इख़्तिलात फीके से॥
हसीन मिस्ले-शहर मयख़ाने,
लगते अब घर, देहात फीके से।
साथ साक़ी का हाथ में प्याला,
यूँ तो हर एहतियात फीके से।
बस उसके ख़ाब में मेरा खोना
और हर मा’लूमात फीके से।
चख चुका अब शराबे-लब ग़ाफ़िल,
अब तो आबे-हयात फीके से॥
(फ़ाकेहात=ताज़े हरे मेवे जैसे सेब आदि, इख़्तिलात= चुम्बन आलिंगन आदि, आबे-हयात= अमृत)
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बहुत प्रभावी उम्दा गजल !!!
ReplyDeleterecent post : भूल जाते है लोग,
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बृहस्पतिवार (11-04-2013) के देश आजाद मगर हमारी सोच नहीं ( चर्चा - 1211 ) (मयंक का कोना) पर भी होगी!
नवसवत्सर-2070 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ!
सूचनार्थ...सादर!
बहुत ही बेहतरीन गजल...
ReplyDeleteनव वर्ष की शुभकामनाएँ...
:-)
बेहतरीन गज़ल
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन रचना...आपको नवसंवत्सर की हार्दिक मंगलकामनाएँ!
ReplyDeleteसाथ साक़ी का हाथ में प्याला,
ReplyDeleteयूँ हुए दाल-भात फीके से।....क्या बात है ..बेहतरीन इतनी छोटी बहर में इतनी शानदार ग़ज़ल
क्या बात
ReplyDeleteबहुत बढिया
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
सुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....बेहतरीन रचना
ReplyDeleteपधारें "आँसुओं के मोती"
बहुत खूब .
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