क्या हुई तासीर तेरी छुअन की
अब नहीं झंकृत है होता तन-बदन
वह खुमारी सहसा अब छाती नहीं
नृत्य अब करता नहीं है मेरा मन
तू वही तो है? या कि ग़ाफ़िल हूँ मै?
प्रश्न यह पर्वत सा बनता जा रहा
ऐसे दोराहे पे आकर हूँ खड़ा
रास्ता कोई नहीं है भा रहा
है अनिश्चित अब मेरी भवितव्यता
अब तू अपने वास्ते कुछ कर जतन
सारे लोकाचार से उन्मुक्त हो
विचरना अब चाहता है मेरा मन
अब नहीं झंकृत है होता तन-बदन
वह खुमारी सहसा अब छाती नहीं
नृत्य अब करता नहीं है मेरा मन
तू वही तो है? या कि ग़ाफ़िल हूँ मै?
प्रश्न यह पर्वत सा बनता जा रहा
ऐसे दोराहे पे आकर हूँ खड़ा
रास्ता कोई नहीं है भा रहा
है अनिश्चित अब मेरी भवितव्यता
अब तू अपने वास्ते कुछ कर जतन
सारे लोकाचार से उन्मुक्त हो
विचरना अब चाहता है मेरा मन
तू वही तो है? या कि ग़ाफ़िल हूँ मै?
ReplyDeleteप्रश्न यह पर्वत सा बनता जा रहा
ऐसे दोराहे पे आकर हूँ खड़ा
रास्ता कोई नहीं है भा रहा
है अनिश्चित अब मेरी भवितव्यता
अब तू अपने वास्ते कुछ कर जतन
सारे लोकाचार से उन्मुक्त हो
विचरना अब चाहता है मेरा मन
आज सब कुछ पढ़ लेना चाहता हूँ आपका लिखा ! एक एक रचना , एक एक ग़ज़ल ! सुन्दर