गुंचा जो मुस्कुराए समझो बहार आई
भौंरा जो गीत गाए समझो बहार आई
सुलझी हुई सी पूरी ये प्यार वाली डोरी
फिर से गर उलझ जाए समझो बहार आई
सूरत की भोली-भाली वह क़त्ल करने वाली
ख़ुद क़त्ल होने आए समझो बहार आई
कर दे क़रिश्मा जो रब अपनी विसाल की शब
गुज़रे न थम सी जाए समझो बहार आई
गोया कि है ये मुश्किल कोई हुस्न इश्क़ को फिर
आकर गले लगाए समझो बहार आई
ग़ाफ़िल भी जिसका अक्सर जगना ही है मुक़द्दर
सपने अगर सजाए समझो बहार आई
भौंरा जो गीत गाए समझो बहार आई
सुलझी हुई सी पूरी ये प्यार वाली डोरी
फिर से गर उलझ जाए समझो बहार आई
सूरत की भोली-भाली वह क़त्ल करने वाली
ख़ुद क़त्ल होने आए समझो बहार आई
कर दे क़रिश्मा जो रब अपनी विसाल की शब
गुज़रे न थम सी जाए समझो बहार आई
गोया कि है ये मुश्किल कोई हुस्न इश्क़ को फिर
आकर गले लगाए समझो बहार आई
ग़ाफ़िल भी जिसका अक्सर जगना ही है मुक़द्दर
सपने अगर सजाए समझो बहार आई
कोई फूल महक जाए समझो बहार
ReplyDeleteआई कोई गीत गुनगुनाए समझो बहार आई
सुलझी हुई सी पूरी ये प्यार वाली डोरी गर फिर से उलझ जाए समझो बहार आई
सूरत की भोली-भाली वह क़त्ल करने वाली ख़ुद क़त्ल होने आए समझो बहार आई
कर दे जो क़रिश्मा रब गरचे विसाल की शब गुज़रे न ठहर जाए समझो बहार आई
गोया कि है ये मुश्किल कोई हुस्न इश्क़ को फिर आकर गले लगाए समझो बहार आई
ग़ाफ़िल भी जिसका हर पल मरना हुआ मुक़र्रर सपने अगर सजाए समझो बहार आई
किसी दुश्मन से भी गलती से दिल मिल जाए ,
समझो बहार आई।
सुन्दर भाव बोध की रचना।
कोई कुढ़ के भी गले लगाए ,समझो बहार आई।
आपको विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ, माँ दुर्गा जी आपकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करें।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [14.10.2013]
ReplyDeleteचर्चामंच 1398 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
रामनवमी एवं विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं सहित
सादर
सरिता भाटिया
बेहतरीन ग़ज़ल ..वाकई बहार आ गयी ..इस ग़ज़ल को तो मैंने कई बार गुनगुनाया ..बहुत आनंद आया ..कर दे जो क़रिश्मा रब गरचे विसाल की शब
ReplyDeleteगुज़रे न ठहर जाए समझो बहार आई
गोया कि है ये मुश्किल कोई हुस्न इ.श्क़ को फिर
आकर गले लगाए समझो बहार आई...उर्दू के लफ्ज न जानने की बजह से ये दो शेर समझ नहीं सका .शब्दों के अर्थ बता दें ताकी आनंद दूना हो जाए ..ढेरो बढ़ाई ...दशहरे के शुभकामनाएं
बहुत बढ़िया ऊंचे पाए की रचना है यह।
ReplyDeleteलाजवाब गजल ,वाकई बहार आ गई -बधाई |
ReplyDeleteबहुत खूब....बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
wakai bhut hi umda likha hai apne ....badhai
ReplyDeleteकर दे जो क़रिश्मा रब गरचे विसाल की शब
ReplyDeleteगुज़रे न ठहर जाए समझो बहार आई
गोया कि है ये मुश्किल कोई हुस्न इश्क़ को फिर
आकर गले लगाए समझो बहार आई
क्या बात है ! बहुत खूब ग़ाफ़िल साब