हवा का इक झोंका हूँ मैं
नहीं टोकी-टोका हूँ मैं
न आऊँ तो मेरा इंतजार
आ भी जाऊँ तो सिर्फ़ बयार
तुम्हारी साँसों का उच्छ्वास
अरे! मैं कैसे नहीं हूँ ख़ास?
धरूँ मैं रूप अगर विकराल
बनूं फिर महाकाल का काल
बनूं जो मन्द-सुगन्ध-समीर
हरूँ प्रति हिय की दारुण पीर
संयोगीजन का हृद-उल्लास
अरे! मैं कैसे नहीं हूँ ख़ास?
प्रकृति की भाव-तरणि निर्द्वन्द्व
तैरती प्रमुदित मन स्वच्छन्द
कर रही सृष्टि-सिन्धु को पार
डाल मुझ पर सारा सम्भार
एक ग़ाफ़िल पर यह विश्वास
अरे! मैं कैसे नहीं हूँ ख़ास?
नहीं टोकी-टोका हूँ मैं
न आऊँ तो मेरा इंतजार
आ भी जाऊँ तो सिर्फ़ बयार
तुम्हारी साँसों का उच्छ्वास
अरे! मैं कैसे नहीं हूँ ख़ास?
धरूँ मैं रूप अगर विकराल
बनूं फिर महाकाल का काल
बनूं जो मन्द-सुगन्ध-समीर
हरूँ प्रति हिय की दारुण पीर
संयोगीजन का हृद-उल्लास
अरे! मैं कैसे नहीं हूँ ख़ास?
प्रकृति की भाव-तरणि निर्द्वन्द्व
तैरती प्रमुदित मन स्वच्छन्द
कर रही सृष्टि-सिन्धु को पार
डाल मुझ पर सारा सम्भार
एक ग़ाफ़िल पर यह विश्वास
अरे! मैं कैसे नहीं हूँ ख़ास?
of course ! u r special ..
ReplyDeleteथैंक्स प्रतिमा!
Deleteबहुत सुन्दर आत्मविश्वास से भरी प्रस्तुति बहुत खूब ,बधाई आपको
ReplyDeleteशुक़्रिया राजेश कुमारी जी!
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (25-12-13) को "सेंटा क्लॉज है लगता प्यारा" (चर्चा मंच : अंक-1472) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी!
Deleteख़ास बनाने के कारणों पर आपकी कलम खूब चली
ReplyDeleteनए साल कि शुभकानाए
हा हा हा हा धन्यवाद भाई पाण्डेय जी!
Deleteप्रकृति की भाव-तरणि निर्द्वन्द्व
ReplyDeleteतैरती प्रमुदित मन स्वच्छन्द
कर रही सृष्टि-सिन्धु को पार
डाल मुझ पर सारा सम्भार
बहुत सुंदर प्रस्तुति ....
धन्यवाद अनुपमा जी
Deleteहवा का इक झोंका हूँ मैं
ReplyDeleteनहीं टोकी-टोका हूँ मैं
न आऊँ तो मेरा इंतजार
आ भी जाऊँ तो सिर्फ़ बयार
तुम्हारी साँसों का उच्छ्वास
अरे! मैं कैसे नहीं हूँ ख़ास?
बहु आयामी प्रकृति की नट लीला से संसिक्त रचना।
राम राम भाई! आपकी जय हो बहुत बहुत शुक़्रिया और आभार आपका
Deleteजी बिलकुल सही लिखा आपने .. यही विश्वास तो एक आम व्यक्ति को खास बनाता है !
ReplyDeleteथैंक्स शालिनी जी!
Deleteउम्दा पोस्ट |सशक्त रचना |
ReplyDeleteआपका आभार आशा मैम!
Deleteग़ाफ़िल जी ....आप तो खासमखास हैं .....
ReplyDeleteशुभकामनायें!
अशोक जी उत्साहवर्द्धन के लिए बहुत-बहुत शुक़्रिया!
Deleteबहुत सुंदर भाव..शब्दों का चयन भी उत्तम है
ReplyDeleteअनीता जी को आदाब और शुक़्रिया!
Delete
ReplyDeleteहाय हाय हाय …क्या कहने
वाह वाह
अलबेला भाई साहब आदाब और शुक़्रिया भी लेते जाओ लगे हाथ हाँ नहीं तो!
Deleteबहुत बढ़िया रचना !
ReplyDeleteनई पोस्ट मेरे सपनो के रामराज्य (भाग तीन -अन्तिम भाग)
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