Wednesday, January 28, 2015

कुछ अलाहदा शे’र : हमारे पास बहुत धोखे हैं

1.
चाँद भी अब्र के पीछे से इस तरह झांके,
जैसे घूँघट से निहारे मुझे चेहरा तेरा।
2.
उनका बनने में मुझे दो पल से ज़्यादा ना लगा,
बस उन्हें अपना बनाने में उमर जाती रही।
3.
न हो जो हिम्मते-दीदारे-हक़ीक़त ‘ग़ाफ़िल’,
ख़्वाब ही कोई इक हसीन सजाकर देखो।
4.
यह शब भी जा रही है अब तो चला दे ख़ंजर,
मुझे मारने से पहले तुझे नींद आ न जाए।
5.
तेरी दहलीज़ से होकर गुज़रता था जो इक रस्ता,
ऐ ग़ाफ़िल क्या हुआ के आजकल वह भी नदारद है।
6.
हमारे पास बहुत धोखे हैं,
कोई चाहे एकाध ले जाए।
7.
अक्स उसका उभर रहा हर सू,
अब मुझे नींद आ रही शायद।
8.
क़लम की नोक पर तेरी मैं आ गया क्या कम,
भले न सद्र इबारत में हाशिए पे सही।
9.
मुझे करना मुआफ़ अल्ला अगर गुस्ताख़ हो जाऊँ,
बड़ी नाज़ो अदा के साथ वो महफ़िल में आए हैं।
10.
हो रहा नज़्रे-आतिश दिल का घर भरे सावन,
कोई आ करके अब नज़रों के क़हर को रोके।

1 comment:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29-01-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1873 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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