1.
जिगर के पार न कर खेंच कर मत मार ख़ंजर को,
तड़पता देखने के लुत्फ़ को ज़ाया नहीं करते।
2.
आँगन में अपने कैक्टस की झाड़ देखकर
ख़ुश हो रहे हैं ये के आग़ाज़े बहार है
3.
हिचकियां थम नहीं रहीं, शायद
मेरे क़ातिल ने याद फ़रमाया।
4.
ये गौहर काम आएँगे इन्हें ज़ाया नहीं करते,
ज़मीं से अश्क उठ फिर चश्म में आया नहीं करते।
5.
तुम्हारे दिल में हमारी जगह नहीं न सही,
तुम्हारे सामने की झोपड़ी हमारी है।
6.
तेरे आरिद पे तबस्सुम का रक्स करना और,
मेरे सीने में कोई सैफ़ उतरते जाना।
7-
तूने तोड़ा दिल को मेरे नाम तेरा ले सकता हूँ पर,
मैं यह चाहूँ मेरे होते तुझपे कोई इल्ज़ाम न आए।
8.
दिल मिरा टूटा हुआ है उसे ग़ुमान न था,
लूटने वाला लूट करके बहुत पछताया।
9.
मेरा चेहरा बिगाड़ कर मुझे दिखाता है,
एक अर्सा से आईने को संवारा जो नहीं।
10-
जब यूँ लगता है के कुछ सीखना बाक़ी न रहा,
कोई आ करके नया पाठ पढ़ा देता है।
जिगर के पार न कर खेंच कर मत मार ख़ंजर को,
तड़पता देखने के लुत्फ़ को ज़ाया नहीं करते।
2.
आँगन में अपने कैक्टस की झाड़ देखकर
ख़ुश हो रहे हैं ये के आग़ाज़े बहार है
3.
हिचकियां थम नहीं रहीं, शायद
मेरे क़ातिल ने याद फ़रमाया।
4.
ये गौहर काम आएँगे इन्हें ज़ाया नहीं करते,
ज़मीं से अश्क उठ फिर चश्म में आया नहीं करते।
5.
तुम्हारे दिल में हमारी जगह नहीं न सही,
तुम्हारे सामने की झोपड़ी हमारी है।
6.
तेरे आरिद पे तबस्सुम का रक्स करना और,
मेरे सीने में कोई सैफ़ उतरते जाना।
7-
तूने तोड़ा दिल को मेरे नाम तेरा ले सकता हूँ पर,
मैं यह चाहूँ मेरे होते तुझपे कोई इल्ज़ाम न आए।
8.
दिल मिरा टूटा हुआ है उसे ग़ुमान न था,
लूटने वाला लूट करके बहुत पछताया।
9.
मेरा चेहरा बिगाड़ कर मुझे दिखाता है,
एक अर्सा से आईने को संवारा जो नहीं।
10-
जब यूँ लगता है के कुछ सीखना बाक़ी न रहा,
कोई आ करके नया पाठ पढ़ा देता है।
दिल मिरा टूटा हुआ है उसे ग़ुमान न था,
ReplyDeleteलूटने वाला लूट करके बहुत पछताया।
बहुत खूब!!
मेरा चेहरा बिगाड़ कर मुझे दिखाता है,
ReplyDeleteएक अर्सा से आईने को संवारा जो नहीं.....एक से एक सुन्दर शेर ! साभार! आदरणीय ग़ाफ़िल जी!
धरती की गोद
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (21-02-2015) को "ब्लागर होने का प्रमाणपत्र" (चर्चा अंक-1896) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहतरीन शेर।
ReplyDeletewaah! bahut khub, kya baat hai ,umda sher. ye wala vishesh pasdn aaye....जिगर के पार न कर खेंच कर मत मार ख़ंजर को,
ReplyDeleteतड़पता देखने के लुत्फ़ को ज़ाया नहीं करते।
2.
हथेलियों पे कैक्टस की झाड़ उगा कर,
ख़ुश हो रहे हैं यह के आग़ाज़े बहार है।
गाफिल साहब के शेर हों या गज़ल लाजवाब हैं ! उनके लेखन की सबसे ख़ास बात यह है कि भाषा अपने शुद्धतम रूप में रहती है जैसा कि आजकल नए शायरों के झुण्ड में देखने को नहीं मिलता है ! जितने ही उनके शेर भाषाई रूप से शुद्ध हैं हैं उतने ही भावप्रणव भी है ! आपको हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteआप सबका बहुत बहुत आभार
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