उसको तो पता यह भी न चला
उसपे बहार कब छाई है।
कब कोमल कलियाँ चटक गयीं,
कब लाज की लाली धाई है।।
कब उसका वह भोला बचपन,
इस रंगमंच से विदा हुआ;
कब चंचल चितवन चुग़लायी,
कब लट उसकी लहराई है।
इक अन्जानी ख़ुश्बू से कब,
उसका तन उपवन महक उठा;
कब मन की कोयल कूक उठी,
कब गीत प्रणय के गाई है।
कब गति-गयंद गामिनी हुई,
कब मधुपूरितयामिनी हुई;
कब यौवन-भार दबी कुचली
कृश कटि उसकी बलखाई है।
ग़ाफ़िल! इन शोख़ अदाओं का,
कब से दीवाना बन बैठा;
जब भी ये कलियाँ फूल बनीं,
अलियों की शामत आई है।।
उसपे बहार कब छाई है।
कब कोमल कलियाँ चटक गयीं,
कब लाज की लाली धाई है।।
कब उसका वह भोला बचपन,
इस रंगमंच से विदा हुआ;
कब चंचल चितवन चुग़लायी,
कब लट उसकी लहराई है।
इक अन्जानी ख़ुश्बू से कब,
उसका तन उपवन महक उठा;
कब मन की कोयल कूक उठी,
कब गीत प्रणय के गाई है।
कब गति-गयंद गामिनी हुई,
कब मधुपूरितयामिनी हुई;
कब यौवन-भार दबी कुचली
कृश कटि उसकी बलखाई है।
ग़ाफ़िल! इन शोख़ अदाओं का,
कब से दीवाना बन बैठा;
जब भी ये कलियाँ फूल बनीं,
अलियों की शामत आई है।।
अति सुन्दर सर।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर वर्णन ,उफनती यौवन !
ReplyDeleteआस्था और ज्ञान !
newpost कहानी -विजयी सैनिक
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07-01-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1882 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत खूब, लाजवाब... भई वाह...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आप सभी लोगो का हार्दिक स्वागत है.
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत खूब ग़ाफ़िल साहब ...