किए बदनाम हैं सब आशिक़ी को
मगर हासिल हुआ क्या कुछ किसी को
हसीनों की सिफ़त मालूम है क्या?
नज़र से चीरती हैं आदमी को
किया इज़हार मैंने जो अचानक
अचानक हो गया कुछ उस कली को
चलो यूँ तो हुआ दौरे रवाँ में
नहीं होता ज़रर दिल की लगी को
हक़ीक़त में नहीं तो ख़्वाब में ही
मगर अपना बनाऊँगा उसी को
हुए मासूम से चेहरे सभी के
अरे क्या साँप सूँघा है सभी को
हुआ ग़ाफ़िल न मेरे सा कोई गर
लुटाएगा भला फिर कौन जी को
-‘ग़ाफ़िल’
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " अपना सुख उसने अपने भुजबल से ही पाया " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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