Friday, February 05, 2016

बढ़ रही रफ़्तार की दीवानगी चारों तरफ़

हर मुहल्ले, हर सड़क पर, हर गली, चारों तरफ़
है तेरा जल्वा, तेरी चर्चा रही चारों तरफ़

आस्माँ पे अब्र भी छाने से कतराने लगे
इस तरह फैली है तेरी रौशनी चारों तरफ़

तुझको मुझसे इश्क़ है ये बात तूने क्यूँ भला
एक बस मुझसे छुपाई औ कही चारों तरफ़

क्यूँ रहे अब धड़कनों पर भी किसी को ऐतबार
बढ़ रही रफ़्तार की दीवानगी चारों तरफ़

ख़ुश बहुत है इश्क़ फिर भी, गो तमाशा बन चुका
हो रही तारीफ़ जो अब हुस्न की चारों तरफ़

रख के शाने पर किसी ग़ाफ़िल के गोली दाग ले
शर्तिया होगी हँसी लेकिन तेरी चारों तरफ़

-‘ग़ाफ़िल’

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-02-2016) को "हँसता हरसिंगार" (चर्चा अंक-2245) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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