Sunday, March 20, 2016

मुझे भी जानना है किस सिफ़त का अम्न होता है

ग़ज़ब यह है के अब दिल चौक पर नीलाम होता है
पड़े है फ़र्क़ क्या इससे के तेरा है के मेरा है

अरे बीमार हूँ क्या जो मुझे ऐसा लगे हरदम
के इस रंगीन दुनिया में मिला हर शख़्स अपना है

न जानूं है ये क्या जो हूँ उसी की तर्फ़दारी में
मुझे जिस शख़्स ने हरहाल में हर वक़्त लूटा है

ग़ज़लगोई है फ़ित्रत में लिहाज़ा हुस्नवालों का
मेरे ज़ेह्नो जिगर से क़ुद्रतन भी एक रिश्ता है

कभी जब मुस्कुराना तो मुझे भी इत्तिला करना
मुझे भी जानना है किस सिफ़त का अम्न होता है

है जज़्बा-ए-मुहब्बत जो बला की तंगहाली में
भी ग़ाफ़िल चाँद सूरज तोड़ लाने को मचलता है

-‘ग़ाफ़िल’

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (20-03-2016) को "लौट आओ नन्ही गौरेया" (चर्चा अंक - 2288) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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