जी में थोड़ा ग़ुबार है के नहीं
यानी अब ऐतबार है के नहीं
रात ढलती है शम्स उगता है
आदमी ख़ुशगवार है के नहीं
शब की लज़्ज़त भी जान लोगे सुब
देख लेना ख़ुमार है के नहीं
कोई भी तौर नाम अपना रक़ीब
उसके ख़त में शुमार है के नहीं
और ग़ाफ़िल जी! तीर नज़रों का
सीने के आर पार है के नहीं
-‘ग़ाफ़िल’
यानी अब ऐतबार है के नहीं
रात ढलती है शम्स उगता है
आदमी ख़ुशगवार है के नहीं
शब की लज़्ज़त भी जान लोगे सुब
देख लेना ख़ुमार है के नहीं
कोई भी तौर नाम अपना रक़ीब
उसके ख़त में शुमार है के नहीं
और ग़ाफ़िल जी! तीर नज़रों का
सीने के आर पार है के नहीं
-‘ग़ाफ़िल’
बहुत खूब!
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख है Movie4me you share a useful information.
ReplyDeleteकोई भी तौर का जवाब नहीं जनाब।
ReplyDeleteवाह...
मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है👉👉 जागृत आँख
very useful information.movie4me very very nice article
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख है
ReplyDeleteआपकी वर्णन बहुत ही स्पष्ट है। आपने एक बहुत ही शानदार कविता लिख डाली है। इस कविता के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।
ReplyDeletePNB HRMS for retired employees
Looking forward to reading more. Great article post. Thanks Again. Fantastic.
ReplyDelete