पूछो न रोज़ रोज़ के आख़िर में क्या हूँ मैं
सोचो तो सारे मर्ज़ की वैसे दवा हूँ मैं
मौसम कोई भी दिल का हो आओगे पास तो
पाओगे तपते जेठ में पुरवा हवा हूँ मैं
जैसे भी हो वो तुम हो मुझे क्यूँ हो फ़िक़्रो ग़म
कहना ये क्या है बोलो के तुझसे ख़फ़ा हूँ मैं
जो दिख रहा हूँ उसपे हमेशा उठा सवाल
जो दिख नहीं रहा हूँ वो तो शर्तिया हूँ मैं
ग़ाफ़िल रहे हैं वो ही जो कहते रहे हैं यार
आ जा न पास मेरे तेरा आसरा हूँ मैं
-‘ग़ाफ़िल’
सोचो तो सारे मर्ज़ की वैसे दवा हूँ मैं
मौसम कोई भी दिल का हो आओगे पास तो
पाओगे तपते जेठ में पुरवा हवा हूँ मैं
जैसे भी हो वो तुम हो मुझे क्यूँ हो फ़िक़्रो ग़म
कहना ये क्या है बोलो के तुझसे ख़फ़ा हूँ मैं
जो दिख रहा हूँ उसपे हमेशा उठा सवाल
जो दिख नहीं रहा हूँ वो तो शर्तिया हूँ मैं
ग़ाफ़िल रहे हैं वो ही जो कहते रहे हैं यार
आ जा न पास मेरे तेरा आसरा हूँ मैं
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में रविवार 15 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteशुक्रिया यशोदा जी
Deleteबहुत दमदार हैं सर , उम्दा और धारदार | बहुत अच्छे , तेवर कमाल हैं | अब आता रहूंगा सर आपको पढ़ने अनुसरक बन कर जा रहा हूँ
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया अजय भाई आपका हमेशा स्वागत है
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteBahut khoob
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लाज़वाब।
ReplyDeleteएक एक शेर बेहतरीन।
शर्तिया हूँ मैं... वाह वाह।
नई रचना- सर्वोपरि?
वाह!!!
ReplyDeleteबहुत लाजवाब।
वाह! बेहद उम्दा।
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