भले अपना तू कह कितना मगर क्या घर समझता है
मुसल्सल हाले दिल तो मील का पत्थर समझता है
समझ में यह नहीं आता के रस्ते का खटारापन
सने ख़ूँ से ये मेरे पा के यह रहबर समझता है
दिखावे के लिए कर ले तग़ाफ़ुल ठीक है गोया
मुझे है इल्म तू जी की मेरे जी भर समझता है
नहीं समझा कहे कितना भी ये माना न जाएगा
तुझे अपना बनाना मेरा तू बेहतर समझता है
जो सर पे हाथ फेरे जा रहा ग़ाफ़िल है चारागर
लगी है चोट दिल पर और ये सर पर समझता है
-‘ग़ाफ़िल’
मुसल्सल हाले दिल तो मील का पत्थर समझता है
समझ में यह नहीं आता के रस्ते का खटारापन
सने ख़ूँ से ये मेरे पा के यह रहबर समझता है
दिखावे के लिए कर ले तग़ाफ़ुल ठीक है गोया
मुझे है इल्म तू जी की मेरे जी भर समझता है
नहीं समझा कहे कितना भी ये माना न जाएगा
तुझे अपना बनाना मेरा तू बेहतर समझता है
जो सर पे हाथ फेरे जा रहा ग़ाफ़िल है चारागर
लगी है चोट दिल पर और ये सर पर समझता है
-‘ग़ाफ़िल’
बेहतरीन सृजन
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