क्या मिला इसको मुख़्तसर करके
लुत्फ़ था ज़ीस्त का सफ़र करके
मेरे जी को कभी न जी समझा
वो जो रहता है जी में घर करके
ख़्वाहिश अपनी कभी तो हो पूरी
जाए मुझको भी कोई सर करके
न मिला जो मुक़ाम जीते जी
पाते देखा है उसको मर करके
जाए जब तो ख़बर करे न करे
आए कोई तो बाख़बर करके
कोई हँसता है दर-ब-दर होकर
कोई रोता है दर-ब-दर करके
ग़ाफ़िल ऐसे ही जाना क्या जाना
शब भी जाती है पर सहर करके
-‘ग़ाफ़िल’
लुत्फ़ था ज़ीस्त का सफ़र करके
मेरे जी को कभी न जी समझा
वो जो रहता है जी में घर करके
ख़्वाहिश अपनी कभी तो हो पूरी
जाए मुझको भी कोई सर करके
न मिला जो मुक़ाम जीते जी
पाते देखा है उसको मर करके
जाए जब तो ख़बर करे न करे
आए कोई तो बाख़बर करके
कोई हँसता है दर-ब-दर होकर
कोई रोता है दर-ब-दर करके
ग़ाफ़िल ऐसे ही जाना क्या जाना
शब भी जाती है पर सहर करके
-‘ग़ाफ़िल’
उम्दा
ReplyDeleteशुक्रिया शास्त्री जी
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