Friday, March 27, 2020

शब भी जाती है पर सहर करके

क्या मिला इसको मुख़्तसर करके
लुत्फ़ था ज़ीस्त का सफ़र करके

मेरे जी को कभी न जी समझा
वो जो रहता है जी में घर करके

ख़्वाहिश अपनी कभी तो हो पूरी
जाए मुझको भी कोई सर करके

न मिला जो मुक़ाम जीते जी
पाते देखा है उसको मर करके

जाए जब तो ख़बर करे न करे
आए कोई तो बाख़बर करके

कोई हँसता है दर-ब-दर होकर
कोई रोता है दर-ब-दर करके

ग़ाफ़िल ऐसे ही जाना क्या जाना
शब भी जाती है पर सहर करके

-‘ग़ाफ़िल’

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