न था इल्म यह के गुनाह कर दिया मैंने यूँ तुझे प्यार कर
मेरे यार तुझसे है इल्तिज़ा न करे मुआफ़ तो दार कर
जो कहे तू है ये गुनाह तो ये गुनाह मेरा शग़ल रहा
मुझे जो जँचा उसे पा लिया कभी जीतकर कभी हारकर
-‘ग़ाफ़िल’
मेरे यार तुझसे है इल्तिज़ा न करे मुआफ़ तो दार कर
जो कहे तू है ये गुनाह तो ये गुनाह मेरा शग़ल रहा
मुझे जो जँचा उसे पा लिया कभी जीतकर कभी हारकर
-‘ग़ाफ़िल’
सुन्दर मुक्तक
ReplyDelete