कौन कहता है के ता’उम्र किसी के रहिए
हाँ ज़ुरूरी है मगर यह भी के अपने रहिए
दुख की घड़ियाँ ही बताती हैं के सुख चैन के वक़्त
आप सब लोग सुलह-साट से कैसे रहिए
ठौर ये यूँ भी नहीं है के रहें हरदम आप
इक नया ठौर कोई और तलाशे रहिए
अंजुमन आपकी है लुत्फ़ भी है आपका ही
क्यूँ कहूँ मैं के भला आप तो आते रहिए
वार होना ही है जो मौका मिला ग़ाफ़िल जी!
हुस्न वालों से तो हरहाल सँभलते रहिए
-‘ग़ाफ़िल’
हाँ ज़ुरूरी है मगर यह भी के अपने रहिए
दुख की घड़ियाँ ही बताती हैं के सुख चैन के वक़्त
आप सब लोग सुलह-साट से कैसे रहिए
ठौर ये यूँ भी नहीं है के रहें हरदम आप
इक नया ठौर कोई और तलाशे रहिए
अंजुमन आपकी है लुत्फ़ भी है आपका ही
क्यूँ कहूँ मैं के भला आप तो आते रहिए
वार होना ही है जो मौका मिला ग़ाफ़िल जी!
हुस्न वालों से तो हरहाल सँभलते रहिए
-‘ग़ाफ़िल’
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