लगना नहीं चाहिए था पर लगता है
इश्क़ अदावत से भी बदतर लगता है
सोकर देखे जाने वाले से ज़्यादा
सपना जगे ही देख तू, बेहतर लगता है
हूँ क़तील मैं ही और अब इल्ज़ाम इसका
आने को है मेरे ही सर, लगता है
मैं भी कह देता हूँ मैंने वफ़ा न की
तुझको जानम ऐसा ही गर लगता है
तूने जीती दुनिया मैंने प्यार उसका
बोल के तुझको कौन सिकन्दर लगता है
कोई सहारा हो न अगर तो ऐसे में
रस्ते का पत्थर भी रहबर लगता है
इस दुनिया की यही रीति है ग़ाफ़िल जी
कुछ तो न पाया सब कुछ पाकर लगता है
-‘ग़ाफ़िल’
इश्क़ अदावत से भी बदतर लगता है
सोकर देखे जाने वाले से ज़्यादा
सपना जगे ही देख तू, बेहतर लगता है
हूँ क़तील मैं ही और अब इल्ज़ाम इसका
आने को है मेरे ही सर, लगता है
मैं भी कह देता हूँ मैंने वफ़ा न की
तुझको जानम ऐसा ही गर लगता है
तूने जीती दुनिया मैंने प्यार उसका
बोल के तुझको कौन सिकन्दर लगता है
कोई सहारा हो न अगर तो ऐसे में
रस्ते का पत्थर भी रहबर लगता है
इस दुनिया की यही रीति है ग़ाफ़िल जी
कुछ तो न पाया सब कुछ पाकर लगता है
-‘ग़ाफ़िल’
उम्दा ग़ज़ल
ReplyDeleteवाह ! बेहतरीन
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