Tuesday, June 30, 2020

आदमी है आदमी अपनी बदौलत

ले लो ये बज़्मे सुखन वाली रियासत
मुँह नहीं ही लगने की अपनी है आदत

कुछ न पाओगे तग़ाफ़ुल करके मुझसे
सोचते हो गर के मिल जाएगी इश्रत

क्यूँ किसी को इश्क़ में रुस्वा करूँ पर
कर तो सकता हूँ मैं गो ऐसी हिमाक़त

है ज़ुरूरी यह के याद इतना रहे ही
आदमी है आदमी अपनी बदौलत

ढूँढते ग़ाफ़िल हैं सारे इश्क़ में क्या
इश्क़ है ख़ुद आप ही में जबके नेमत

-‘ग़ाफ़िल’

6 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 2.7.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा -3750 पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. वाह ! सुभानअल्लाह

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 15 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. बहुत सुंदर उम्दा सृजन।

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