न पूछ आया यहाँ क्या देखने को
बता अब क्या है रक्खा देखने को
थी ख़्वाहिश देखने की तेरा चेहरा
मगर मिलता है क्या क्या देखने को
यहाँ हर शै है संज़ीदा बहुत ही
मैं आया था तमाशा देखने को
सुक़ून आया नहीं अब तक जो शायद
अभी भी है कुछ अच्छा देखने को
न आता मैं सदा जो ये न आती
के ग़ाफ़िल अब चला आ देखने को
-‘ग़ाफ़िल’
बता अब क्या है रक्खा देखने को
थी ख़्वाहिश देखने की तेरा चेहरा
मगर मिलता है क्या क्या देखने को
यहाँ हर शै है संज़ीदा बहुत ही
मैं आया था तमाशा देखने को
सुक़ून आया नहीं अब तक जो शायद
अभी भी है कुछ अच्छा देखने को
न आता मैं सदा जो ये न आती
के ग़ाफ़िल अब चला आ देखने को
-‘ग़ाफ़िल’
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