ये देखो रंग प्यारे हो रहे हैं
अरे! सारे के सारे हो रहे हैं
कोई तो ख़ूबी-ए-नौ आई हममें
जो थे ग़ैर अब हमारे हो रहे हैं
हुआ अच्छा किनारा कर ली किस्मत
हम अब अपने सहारे हो रहे हैं
हरूफ़ अपने गँवा बैठी ज़ुबाँ क्या
जिधर देखो इशारे हो रहे हैं
हैं हम जैसे रहेंगे वैसे ग़ाफ़िल
भले किस्मत के मारे हो रहे हैं
ReplyDeleteहुआ अच्छा किनारा कर ली किस्मत
हम अब अपने सहारे हो रहे हैं ,,,,,, बहुत सुंदर ग़ज़ल, आदरणीय शुभकामनाएँ ।
शुक्रिया आदरणीया
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (०९-०३-२०२१) को 'मील का पत्थर ' (चर्चा अंक- ४,००० ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
धन्यवाद महोदया
Deleteशुक्रिया
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