थोड़ी शिक़्वों की शराब आपसे पा ली जाए
क्यूँ नहीं ऐसे भी कुछ बात बना ली जाए
क्यूँ नहीं ऐसे भी कुछ बात बना ली जाए
आप तो वैसे भी मानेंगे नहीं अपनी कही
क़स्म ली जाए भी तो आपकी क्या ली जाए
कोई तरक़ीब तो निकलेगी ही गर सोचेंगे
नाक भी बाकी रहे मै भी उड़ा ली जाए
इश्क़ की जंग में ऐसा हो तो क्या हो के अगर
तीर चल जाए मगर वार ही खाली जाए
ज़िन्दगी चार ही दिन की है भले ग़ाफ़िल जी
क्यूँ मगर दर से कोई खाली सवाली जाए
-‘ग़ाफ़िल’
वाह..... अतिसुंदर
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत उम्दा सार्थक शेर, लाजवाब।
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