कैसे कह दूँ के है तनख़्वाह मेरी
आप कहते हैं जिसे आह मेरी
आपके दर पे चला आया हूँ मैं
गो निहारी न गयी राह मेरी
वक़्त मेरा है वहीं गुज़रा जहाँ
एक को भी थी नहीं चाह मेरी
लीजिए पढ़ तो दिया शे’र तमाम
अब तो लौटाइए जी वाह मेरी
थी तो ग़ाफ़िल ही मगर क्या थी ग़ज़ब
हाँ जवानी वो शहंशाह मेरी
-‘ग़ाफ़िल’
आप कहते हैं जिसे आह मेरी
आपके दर पे चला आया हूँ मैं
गो निहारी न गयी राह मेरी
वक़्त मेरा है वहीं गुज़रा जहाँ
एक को भी थी नहीं चाह मेरी
लीजिए पढ़ तो दिया शे’र तमाम
अब तो लौटाइए जी वाह मेरी
थी तो ग़ाफ़िल ही मगर क्या थी ग़ज़ब
हाँ जवानी वो शहंशाह मेरी
-‘ग़ाफ़िल’
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