मैंने भी दुनिया ख़ूब देखी है
है पता खट्टी है के मीठी है
एक तूफ़ान जो है सीने में
क़श्ती-ए-ज़ीस्त डूबी जाती है
ज़िन्दगी हो सकी न अपनी तू
किसकी होने की क़स्म खाई है
जाना आना तेरा भी है जैसे
साँस जाती है साँस आती है
ख़ुश्बू यह तिर रही फ़ज़ाओं में जो
कोई चूनर हवा उड़ाई है
मुझमे मेरा ही अक्स ढूँढ रहा
तू ज़माने सा ही फरेबी है
इश्क़ ग़ाफ़िल छुपाए छुप न सके
तूने बात और ही छुपाई है
-‘ग़ाफ़िल’
है पता खट्टी है के मीठी है
एक तूफ़ान जो है सीने में
क़श्ती-ए-ज़ीस्त डूबी जाती है
ज़िन्दगी हो सकी न अपनी तू
किसकी होने की क़स्म खाई है
जाना आना तेरा भी है जैसे
साँस जाती है साँस आती है
ख़ुश्बू यह तिर रही फ़ज़ाओं में जो
कोई चूनर हवा उड़ाई है
मुझमे मेरा ही अक्स ढूँढ रहा
तू ज़माने सा ही फरेबी है
इश्क़ ग़ाफ़िल छुपाए छुप न सके
तूने बात और ही छुपाई है
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (28-05-2017) को
ReplyDelete"इनकी किस्मत कौन सँवारे" (चर्चा अंक-2635)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक