जी से करके जुदा मेरी फ़ुर्सत करें
आप इसके सिवा और कुछ मत करें
ये भी कहने में है लाज़ आती के हम
ख़ुद में पैदा ज़रा आदमीयत करें
इश्क़ आसान है या कठिन है बहुत
इल्म हो जाएगा थोड़ी हिम्मत करें
यादों के हैं धनी आपको भूलकर
क्यूँ हम आबाद फिर अपनी ग़ुरबत करें
देखें हम भी तो ग़ाफ़िल जी हमको भी आप
इक दफा भूल जाने की ज़ुर्रत करें
-‘ग़ाफ़िल’
आप इसके सिवा और कुछ मत करें
ये भी कहने में है लाज़ आती के हम
ख़ुद में पैदा ज़रा आदमीयत करें
इश्क़ आसान है या कठिन है बहुत
इल्म हो जाएगा थोड़ी हिम्मत करें
यादों के हैं धनी आपको भूलकर
क्यूँ हम आबाद फिर अपनी ग़ुरबत करें
देखें हम भी तो ग़ाफ़िल जी हमको भी आप
इक दफा भूल जाने की ज़ुर्रत करें
-‘ग़ाफ़िल’
वाह ! जी का ही तो जंजाल है सारा...
ReplyDeleteवाह ! जी का ही तो जंजाल है सारा...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर 👌
ReplyDeleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १९ नवंबर २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
वाह बहुत सुन्दर
ReplyDeleteकमाल के शेर ...
ReplyDeleteदिली दाद क़बूल करें ....