दो क़त्आ-
1-
लोग तो आते हैं जाते हैं चले राज़ी ख़ुशी
हम हैं जो तेरे सू आने की सज़ा पाएँगे
इल्म तो है ही के हो और भी कुछ या के न हो
हाँ तेरा साथ निभाने की सज़ा पाएँगे
-‘ग़ाफ़िल’
2-
गो पता है के हम आएँगे तेरे दर पे अगर
तेरी नफ़रत के सिवा और भी क्या पाएँगे
टूट जाएँगे न पाएँगे अगर तुझसे वफ़ा
क्या हुआ हम जो ज़माने से वफ़ा पाएँगे
-‘ग़ाफ़िल’
1-
लोग तो आते हैं जाते हैं चले राज़ी ख़ुशी
हम हैं जो तेरे सू आने की सज़ा पाएँगे
इल्म तो है ही के हो और भी कुछ या के न हो
हाँ तेरा साथ निभाने की सज़ा पाएँगे
-‘ग़ाफ़िल’
2-
गो पता है के हम आएँगे तेरे दर पे अगर
तेरी नफ़रत के सिवा और भी क्या पाएँगे
टूट जाएँगे न पाएँगे अगर तुझसे वफ़ा
क्या हुआ हम जो ज़माने से वफ़ा पाएँगे
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11-12-2018) को "जातिवाद में बँट गये, महावीर हनुमान" (चर्चा अंक-3182) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया आदरणीय शास्त्री जी
Deleteवाह,क़ाबिले तारीफ़ !
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