तू तो अब ख़्वाबों के भी पार हुआ जाता है
बोल क्या ऐसे भी लाचार हुआ जाता है
सोचा है जबसे के अब कुछ तो हो शिक़्वा तुझसे
जी मेरा मुझसे ही दो चार हुआ जाता है
उम्र कैद ऐसे तो हो पाई नहीं है ये कसक
हाँ तेरे इश्क़ में अब दार हुआ जाता है
होश गुम तेरे हैं इज़्हारे मुहब्बत पे मेरे
देखता हूँ के तू बीमार हुआ जाता है
तू भी कह लेता मगर कह न सका यार के अब
मेरे ग़ाफ़िल से मुझे प्यार हुआ जाता है
-‘ग़ाफ़िल’
बोल क्या ऐसे भी लाचार हुआ जाता है
सोचा है जबसे के अब कुछ तो हो शिक़्वा तुझसे
जी मेरा मुझसे ही दो चार हुआ जाता है
उम्र कैद ऐसे तो हो पाई नहीं है ये कसक
हाँ तेरे इश्क़ में अब दार हुआ जाता है
होश गुम तेरे हैं इज़्हारे मुहब्बत पे मेरे
देखता हूँ के तू बीमार हुआ जाता है
तू भी कह लेता मगर कह न सका यार के अब
मेरे ग़ाफ़िल से मुझे प्यार हुआ जाता है
-‘ग़ाफ़िल’
Very good post...
ReplyDeleteWelcome to my blog.....
उम्दा ग़ज़ल।
ReplyDelete......
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 22 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
उम्दा पेशकश।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर लिखा है आप मेरी रचना भी पढना
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