चाह ये है जो चाँद तारे हों
सारे के सारे बस हमारे हों
जाग जाओगे छोड़ जाएँगे
ख़्वाब कितने भले ही प्यारे हों
अब ज़रा भी न टाला जाएगा
आज उल्फ़त के वारे न्यारे हों
क्या लुभाएगा उनको शब का शबाब
दर्द में दिन न जो गुज़ारे हों
हम हुए उनके हमको होना था
क्या ज़ुरूरी है वो हमारे हों
-‘ग़ाफ़िल’
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