Tuesday, December 18, 2018

आखि़री पल बचा वस्ल का है

है यहाँ या वहाँ फ़र्क़ क्या है
ज़िन्दगी का यही फलसफा है

आज रंगीं है अपनी तबीयत
आज तो ज़ह्र भी बा-मज़ा है

हुस्न तो हुस्न है उसकी बाबत
क्या हुआ कोई क्या सोचता है

ला पिला अब तो साक़ी मये लब
आखि़री पल बचा वस्ल का है

कोई हरक़त न हो गर ज़रा भी
सोचिए इश्क़ में क्या रहा है

हुस्न वालों की है राय अपनी
इश्क़ है क्या नहीं और क्या है

तो हुआ क्या है गर नाम ग़ाफ़िल
देखिए आदमी वह भला है

-‘ग़ाफ़िल’

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