यार आँखों में है यूँ नमी किसलिए
औ नमी है तो फिर तिश्नगी किसलिए
रूठने और मनाने की आदत नहीं
फिर किया आपने आशिक़ी किसलिए
नाफ़रामोश हैं, होश है, जोश है
फिर भी रिश्तों में मुर्दानगी किसलिए
आदमी आज तक जंगली ही रहा
बस बदलती रही है सदी, किसलिए
एक हद तक हैं पर्दे के क़ाइल सभी
फिर बदन की ये बेपर्दगी किसलिए
घर वही, रुत वही, वो ही क़िर्दार हैं
आईने की उड़ी खिलखिली किसलिए
उनको मालूम क्या ज़िन्दगी का मज़ा
जो कहे जा रहे दिल्लगी किसलिए
अब तलक दर-ब-दर है भटकती रही
एक ग़ाफ़िल की ज़िन्दादिली किसलिए
-‘ग़ाफ़िल’
औ नमी है तो फिर तिश्नगी किसलिए
रूठने और मनाने की आदत नहीं
फिर किया आपने आशिक़ी किसलिए
नाफ़रामोश हैं, होश है, जोश है
फिर भी रिश्तों में मुर्दानगी किसलिए
आदमी आज तक जंगली ही रहा
बस बदलती रही है सदी, किसलिए
एक हद तक हैं पर्दे के क़ाइल सभी
फिर बदन की ये बेपर्दगी किसलिए
घर वही, रुत वही, वो ही क़िर्दार हैं
आईने की उड़ी खिलखिली किसलिए
उनको मालूम क्या ज़िन्दगी का मज़ा
जो कहे जा रहे दिल्लगी किसलिए
अब तलक दर-ब-दर है भटकती रही
एक ग़ाफ़िल की ज़िन्दादिली किसलिए
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 3 - 12 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2179 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद