आस्माँ जब मुझे गिराया था
इस ज़मीं ने गले लगाया था
बस वही बात रह गयी कहनी
ख़ास जो सोच करके आया था
कैसे कह दूँ के था वो तू ही तो
दिल जो मेरा कभी चुराया था
आज तू कर रहा किनारा क्यूँ
जब मुझे कल ही आजमाया था
थी मगर जूँ सराब मंज़िल ही
राहबर तो छँटा छँटाया था
गैर की थी मज़ाल क्या ग़ाफ़िल
आईना ही मुझे रुलाया था
सराब=मृगमरीचिका
-‘ग़ाफ़िल’
इस ज़मीं ने गले लगाया था
बस वही बात रह गयी कहनी
ख़ास जो सोच करके आया था
कैसे कह दूँ के था वो तू ही तो
दिल जो मेरा कभी चुराया था
आज तू कर रहा किनारा क्यूँ
जब मुझे कल ही आजमाया था
थी मगर जूँ सराब मंज़िल ही
राहबर तो छँटा छँटाया था
गैर की थी मज़ाल क्या ग़ाफ़िल
आईना ही मुझे रुलाया था
सराब=मृगमरीचिका
-‘ग़ाफ़िल’
No comments:
Post a Comment