Monday, December 07, 2015

इस ज़मीं ने गले लगाया था

आस्माँ जब मुझे गिराया था
इस ज़मीं ने गले लगाया था

बस वही बात रह गयी कहनी
ख़ास जो सोच करके आया था

कैसे कह दूँ के था वो तू ही तो
दिल जो मेरा कभी चुराया था

आज तू कर रहा किनारा क्यूँ
जब मुझे कल ही आजमाया था

थी मगर जूँ सराब मंज़िल ही
राहबर तो छँटा छँटाया था

गैर की थी मज़ाल क्या ग़ाफ़िल
आईना ही मुझे रुलाया था

सराब=मृगमरीचिका

-‘ग़ाफ़िल’

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