बताए न किसका सताया हुआ है
मेरा दिल मगर चोट खाया हुआ है
यक़ीनन मुहब्बत का मारा है ये दिल
तभी चुप है बेहद लजाया हुआ है
उछलता फिरे है मेरा दिल ख़ुशी से
के उल्फ़त में ख़ुद को लुटाया हुआ है
ये दिल है के आवारा मौसम है कोई
कभी था जो अपना पराया हुआ है
दिलों को जो है जोड़ सकता वो नग़मा
भुलाया हुआ था भुलाया हुआ है
तेरे पास ग़ाफ़िल गो दिल है मेरा पर
कहूँ कैसे तेरा चुराया हुआ है
-‘ग़ाफ़िल’
मेरा दिल मगर चोट खाया हुआ है
यक़ीनन मुहब्बत का मारा है ये दिल
तभी चुप है बेहद लजाया हुआ है
उछलता फिरे है मेरा दिल ख़ुशी से
के उल्फ़त में ख़ुद को लुटाया हुआ है
ये दिल है के आवारा मौसम है कोई
कभी था जो अपना पराया हुआ है
दिलों को जो है जोड़ सकता वो नग़मा
भुलाया हुआ था भुलाया हुआ है
तेरे पास ग़ाफ़िल गो दिल है मेरा पर
कहूँ कैसे तेरा चुराया हुआ है
-‘ग़ाफ़िल’
जय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 11/10/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11-10-2016) के चर्चा मंच "विजयादशमी की बधायी हो" (चर्चा अंक-2492) पर भी होगी!
ReplyDeleteश्री राम नवमी और विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'