इश्क़ तो यारो मुझे मँहगा पड़ा
वक़्ते वस्लत मैं जो पीकर था पड़ा
देख उसको, क्या हुआ इक चश्म ख़म
क्या कहें किस दर्ज़े का चाटा पड़ा
भूत का मैंने लिया जैसे ही नाम
वह मुआ सूरत में उसकी आ पड़ा
कोई बावर्ची नहीं थे जबके वे
नाम फिर भी मुल्ला दो प्याज़ा पड़ा
था परीशाँ रूसियों से इसलिए
सर जो मुड़वाया तभी ओला पड़ा
चाहता ग़ाफ़िल हूँ शिद्दत से तो, पर
क्यूँ नहीं दिल पर मेरे डाका पड़ा
-‘ग़ाफ़िल’
वक़्ते वस्लत मैं जो पीकर था पड़ा
देख उसको, क्या हुआ इक चश्म ख़म
क्या कहें किस दर्ज़े का चाटा पड़ा
भूत का मैंने लिया जैसे ही नाम
वह मुआ सूरत में उसकी आ पड़ा
कोई बावर्ची नहीं थे जबके वे
नाम फिर भी मुल्ला दो प्याज़ा पड़ा
था परीशाँ रूसियों से इसलिए
सर जो मुड़वाया तभी ओला पड़ा
चाहता ग़ाफ़िल हूँ शिद्दत से तो, पर
क्यूँ नहीं दिल पर मेरे डाका पड़ा
-‘ग़ाफ़िल’
जय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 27/10/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-10-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2508 में दिया जाएगा ।
ReplyDeleteधन्यवाद
बढ़िया ।
ReplyDeleteवाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteमंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार