पायलों की छमछनननन गर नहीं है
फिर मक़ाँ ऐ दोस्त हरगिज़ घर नहीं है
दर वो जिस पर हो न तेरी बू-ओ-छाप
मैं कहूँगा वह मुक़म्मल दर नहीं है
क्यूँ किए जाता है इस पर दस्तकारी
दिल है यह मेरा कोई पत्थर नहीं है
फाख़्ते तू ले न जाएगा ख़बर तो
और क्या कोई भी नामाबर नहीं है
देख ग़ाफ़िल चश्म की दरियादिली यह
छलछलाता है छलकता पर नहीं है
-‘ग़ाफ़िल’
No comments:
Post a Comment