मुझे निहार ले किस्मत सँवार सकता हूँ
भले ही टूट के गिरता हुआ मैं तारा हूँ
नहीं ये मील के पत्थर मुझे सँभाले कभी
पता था गो के इन्हें रास्ते से भटका हूँ
सिसक रहा है कोई मुस्कुरा रहा है कोई
न मुस्कुरा ही सका मैं न सिसक पाया हूँ
मेरी भी हो न हो बढ़ जाए कोई शब क़ीमत
कहाँ मैं थोक हूँ मैं भी तो यार खुदरा हूँ
ख़बर सुनी तो सही तूने ज़माने से भले
यही के इश्क़ में तेरे मैं कैसे रुस्वा हूँ
जो मुझसे आज मुख़ातिब है यह भी कम है कहाँ
भले ही कहता रहे तू के मैं पराया हूँ
न चुभ सके है चुभाए भी ख़ार ग़ाफ़िल अब
मैं इतने ख़ार भरे रास्तों से गुज़रा हूँ
-‘ग़ाफ़िल’
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